रविवार, 21 नवंबर 2010

ये हैं हमारे स्कूल

अन्दर हाफ ऊपर से फुल
कम हैं डेस्क और बहुत सारे टूल
इन सबका बहुत ज्यादा है मूल्य
आये टीचर क्लास गया खुल
अगल बगल हैं बहुत सारे फूल
रस्ते में मिलता है एक पुल
दिल कर रहा था कि बस से जाएँ ,
लेकिन बस गया खुल
बगल के एक वृक्ष पर रहती है बुल-बुल
एक ने कहा चल झुलुआ झूल
मैंने बोला आते है , और गए भूल
एक किलो चीनी एक बाल्टी में गया घूल
हमारे स्कूल के अलग हैं रुल
बस को छुआ तो गया धुल
नोट- ये कविता मेरे भाई ने लिखी है.

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

आज-कल

सोनू तुझे क्या हो गया है। आज कल logon se मिलना जुलना कम कर दिए हो? apne पास कोई mobile रखते ही नही,नही to ham phon करते.मेरा नंबर मालूम हैं न ,फोन किया करो यार। लगता है हमलोगों को भूलते जा रहे हो? शायद यही कहते होंगे मेरे दोस्त। पर हे मेरे मित्रों ऐसी बात नही है। अक्सर तुमलोग हमें याद आये हो। मेरे साथ रहने वाले लोगों से कभी मिल कर देखो,पताचल जायेगा ,कितना तुम्हे याद करते हैं। तुमसे जुढ़ी बातें मै उन्हें कितने प्यार से सुनाता हूँ। मैं वैसा प्रयास कर रहा हूँ मेरे दोस्त कि आने वाले दिनों में मेरे पास फोन हो, एवं मैं तुमसे जुड़ा rahoon। आजकल मुझे सुबह उठकर रोटियां बेलनी परती है। मै अब अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ.

मेरी ख़ुशी

मेरे इतने दिनों कि जिंदगी में ,मै आज जैसा भी हूँ ,खुश हूँ। कुछ दुःख भी हैं ,पर इस ख़ुशी के सामने तुच्छ हैं.हमको खुश रखने में बहुत लोगों का हाथ है। किसी बच्चे कि ख़ुशी में उसके घरवालों का हाथ तो होता ही है,साथ ही साथ कुछ अन्य लोगों ने हमें बहुत मदद की। जिनके बदौलत मै आज इतना खुशहाल हूँ.कुछ अन्य log jinhone हमें ख़ुशी प्रदान की वे इस प्रकार हैं- १.चाचा -चाची, २.मौसा-मौसी , ३.एवं पास-पढ़ोस के लोग.स्कूल के दिनों में जब मैं पारिवारिक कारणों से दुखी रहता था,तब मेरे दोस्त मेरी हरसंभव सहायता किया करते थे एवं दुःख में भागीदार होते थे.ऐसे दोस्तों में मिथलेश अग्रणी है। उसके आलावा और कई दोस्त हैं जिन्होंने मेरी बड़ी सहायता की। उन्ही दोस्तों में सुजीत ,कृष्ण ,हरी ,अजय ,अविनाश, अवधेश, तरुण भैया, पवन भैया,रामकेवल एवं संजय उल्लेखनीय हैं.जब मैं नवोदय विद्यालय से निकल गया तब नितीश कुमार आर्य ने हमें कशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

आपकी सलाह

आपकी सलाह,मेरे प्रेरणा
मैं जो कुछ भी हूँ,आपके बदौलत बना।
आप माने न माने ,किसी दिन पड़ेगा मानना।
अगर आप ये चिराग जलाये न होते,
तो पता नही हम कितने पिछड़े होते,
पिछड़ा तो आज भी हूँ,
इसलिए आता हूँ [अन्य पिछड़ा वर्ग] में
देखो मेरे पिछड़ेपन पर हस मत देना
क्योंकि आपकी सलाह , मेरे प्रेरणा ।
मैं जो कुछ भी हूँ , आपके बदौलत बना.

आपकी प्रंशंस

मैं जो कुछ भी लिखता हूँ , उसमे छिपा होता है मेरा आत्मज्ञान
पढ़ कर प्रशंसा करने वाले होते हैं , बहुत बुद्धिमान।
आसन नही होता किसी कि भावनाओं को समझ लेना,
मै कैसा हूँ , इसका निर्णय आप खुद कर लेना।
प्रशंसा पाते-पाते लिखने कि कला विकसित कर रहा हूँ।
प्रशंसा कितनी जरूरी है,ये अब समझ रहा हूँ।
हे!प्रशंसा करने वालों ,किसी क़ी jहूथी प्रशंसा मत किया करो
है किसी में सचमुच की प्रतिभा ,तब प्रशंसा करने में भी मत चुको।
आपकी प्रशंसा के हैं बहुत मायने
क्योंकि ये उस व्यक्ति के होते हैं आईने ।
आपको इससे कुछ मिले न मिले ,
पर ये क्या कम है,आपकी वाणी किसी को प्रेरित करे।

नोट - आप ये न समझ ले कि [प्रशंस] लिखकर मैंने गलती कि है,क्योंकि [प्रशंस ] का अर्थ होता है - प्रशंसा करना.

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

गज़ब की सुबह

आहा! गज़ब की आज सुबह
मंद-मंद समीरण बह रहा
ऐसे स्वच्छ वातावरण में
हर चीज़ नया लग रहा
चिढियों के झुण्ड आकाश में
कर रहे मनमोहक शोर
नित्य जैसा नही है
वस्तुतः आज का भोर
द्रुम असमान को छूने को आतुर
तकते ऊपर की ओर होकर व्याकुल
बादलों से भरा आकाश
आज बिलकुल मेरे पास
एक सूखे वृक्ष की टहनियों पर
बैठे चिड़ियों की बोली
बड़ा ही अद्वितीय वह दृश्य
जो आज सुबह मैंने देखी ।
बरसात के मौसम में सोनू अपने घर की छत पर सोता है। जब एक दिन वह सुबह उठता है तो प्रकृति उसे बिलकुल नयी प्रतीत होती है। उसी सुबह का चित्रण यहाँ किया गया है.

सोमवार, 3 मई 2010

ये बनारस है

लगभग एक महिना पहले मेरे बाल मित्र आशीष रंजन यहाँ आये थे। उनके साथ मीठी- मीठी बातें करना हमको बहुत भाता है। एक सप्ताह पहले यहाँ अभिषेक आये थे। अभिषेक के आने से हमें अपने नवोदय के कुछ नए खबर सुनने को मिले। इस बार मेरे तिन मित्र और यहाँ आ रहे हैं-सुजीत , कुंदन और आशुतोष। सुजीत तो मेरे बहुत करीबी मित्र हैं। इन्ही के प्रेरणा से आज मै ब्लॉग लिखता हूँ। वास्तव में सुजीत मेरे साहित्यिक मित्र हैं। कुंदन और आशुतोष मेरे करीबी मित्र तो नही पर बहुत दूर के भी मित्र नही हैं। क्योंकि मैंने इनके साथ सात साल गुजारे हैं।
यहाँ रहकर यहाँ के महापुरुषों के विचारों में खोये रहना मेरे लिए आम बात है। यहाँ के महापुरुषों में मै सबसे ज्यादा कबीरदास से प्रभावित हूँ। कबीर के दोहे अक्सर मेरे जुबान पर रहते हैं। कोई भी काम कर रहा होता हूँ तो मन ही मन उनके दोहे गुनगुनाता रहता हूँ। इनके बारे में अध्ययन करता हूँ तो, सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ कि कितने महान विचार थे कबीर के? प्रेमचंद, रैदास ,जयशंकर प्रसाद आदि लेखक यहीं के थे.प्रेमचंद कि कहानी "पूस कि राअत ", मैंने दशवीं कक्षा में पढ़ी थी। उसमे नीलगायों का जिक्र था। यहाँ आकर जब मैंने नीलगाय देखा,
तब पता चला कि एक लेखक अपने समाज ,अपने प्रदेश को कितनी गहरे से देखता है। जिस समय प्रेमचंद वाराणसी में थे ,उस समय नीलगायों द्वारा खेत चर जाना हो सकता है ,आम बात हो। इसको उन्होंने देखा और अपने कहानी में इसका जिक्र कर दिया।