मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

आज-कल

सोनू तुझे क्या हो गया है। आज कल logon se मिलना जुलना कम कर दिए हो? apne पास कोई mobile रखते ही नही,नही to ham phon करते.मेरा नंबर मालूम हैं न ,फोन किया करो यार। लगता है हमलोगों को भूलते जा रहे हो? शायद यही कहते होंगे मेरे दोस्त। पर हे मेरे मित्रों ऐसी बात नही है। अक्सर तुमलोग हमें याद आये हो। मेरे साथ रहने वाले लोगों से कभी मिल कर देखो,पताचल जायेगा ,कितना तुम्हे याद करते हैं। तुमसे जुढ़ी बातें मै उन्हें कितने प्यार से सुनाता हूँ। मैं वैसा प्रयास कर रहा हूँ मेरे दोस्त कि आने वाले दिनों में मेरे पास फोन हो, एवं मैं तुमसे जुड़ा rahoon। आजकल मुझे सुबह उठकर रोटियां बेलनी परती है। मै अब अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ.

मेरी ख़ुशी

मेरे इतने दिनों कि जिंदगी में ,मै आज जैसा भी हूँ ,खुश हूँ। कुछ दुःख भी हैं ,पर इस ख़ुशी के सामने तुच्छ हैं.हमको खुश रखने में बहुत लोगों का हाथ है। किसी बच्चे कि ख़ुशी में उसके घरवालों का हाथ तो होता ही है,साथ ही साथ कुछ अन्य लोगों ने हमें बहुत मदद की। जिनके बदौलत मै आज इतना खुशहाल हूँ.कुछ अन्य log jinhone हमें ख़ुशी प्रदान की वे इस प्रकार हैं- १.चाचा -चाची, २.मौसा-मौसी , ३.एवं पास-पढ़ोस के लोग.स्कूल के दिनों में जब मैं पारिवारिक कारणों से दुखी रहता था,तब मेरे दोस्त मेरी हरसंभव सहायता किया करते थे एवं दुःख में भागीदार होते थे.ऐसे दोस्तों में मिथलेश अग्रणी है। उसके आलावा और कई दोस्त हैं जिन्होंने मेरी बड़ी सहायता की। उन्ही दोस्तों में सुजीत ,कृष्ण ,हरी ,अजय ,अविनाश, अवधेश, तरुण भैया, पवन भैया,रामकेवल एवं संजय उल्लेखनीय हैं.जब मैं नवोदय विद्यालय से निकल गया तब नितीश कुमार आर्य ने हमें कशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।