गुरुवार, 8 अप्रैल 2010
लेडी चत्तेर्ले का प्रेमी
१४ अप्रैल को मेरा इंग्लिश का परिच्छा है। इंग्लिश का परीक्षा हमें दो भागों में देना होता है। दुसरे भाग में हमें पांच उपन्यास पढने होते हैं। उसी में एक उपन्यास का नाम है-सोंस & लोवेर्स, जिसे पढने के बाद मैंने इसे अपना प्रिय पुस्तक बना लिया। यह पुस्तक डी.लावेरेंस के द्वारा लिखी गयी है। लेडी चत्तेर्ले का प्रेमी इनका सबसे विवादस्पद उपन्यास है.हमें लगा इसमें ऐसी क्या बात है जिसे लेकर विवाद हुआ? इसलिए मैंने इसे पढने का निर्णय लिया। ये तो इंग्लिश में लिखा हुआ है, पर इसका हिंदी अनुवाद हमें वाराणसी रेलवे स्टेशन से प्राप्त हुआ। मैंने ये पुस्तक लाकर अविनाश,अवधेश, लोकेश आदि मित्रों को दिखाया। अवधेश को ये पुस्तक इतनी रूचिपूर्ण लगी कि वो रात भर में ही इसे पढ़ गया.अवधेश के पढने के बाद मैं भी इसे एक रात जागकर पूरा पढ़ गया.आपको भी मौका मिले तो कभी पढ़ कर दिखिए.मुझे तो बहुत अच्छा लगा,आपको कैसा लगता है, जरूर बताएयेगा.
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
आज भी नवोदय में जीता हूँ
हूँ तो वाराणसी में पर आज भी नवोदय में जीता हूँ ,
ये कभी नही लगता कि निलगिरी में नही रहता हूँ ।
बड़ा शौक था नवोदय में कि मैं भी प्रवास जाता,
यहाँ रहकर वही शौक अब पूरा करता हूँ।
यहाँ रहना अपने आप में एक प्रवास ही है,
बिलकुल रामचंद्र का वनवास ही है।
गए थे मिथलेश , सुजीत , रजनी ,मेरे सदन से प्रवास में,
असम कि वादियों कि कहनियाँ अक्सर सुनाते १०थ के लीजर क्लास में।
भेजते अक्सर हम लोगों के नाम चिट्ठियाँ भी,
उन चिट्ठियों में होती थी कुछ मजेदार बातों कि गुथियाँ भी.
ये कभी नही लगता कि निलगिरी में नही रहता हूँ ।
बड़ा शौक था नवोदय में कि मैं भी प्रवास जाता,
यहाँ रहकर वही शौक अब पूरा करता हूँ।
यहाँ रहना अपने आप में एक प्रवास ही है,
बिलकुल रामचंद्र का वनवास ही है।
गए थे मिथलेश , सुजीत , रजनी ,मेरे सदन से प्रवास में,
असम कि वादियों कि कहनियाँ अक्सर सुनाते १०थ के लीजर क्लास में।
भेजते अक्सर हम लोगों के नाम चिट्ठियाँ भी,
उन चिट्ठियों में होती थी कुछ मजेदार बातों कि गुथियाँ भी.
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