शनिवार, 3 अप्रैल 2010

आज भी नवोदय में जीता हूँ

हूँ तो वाराणसी में पर आज भी नवोदय में जीता हूँ ,
ये कभी नही लगता कि निलगिरी में नही रहता हूँ ।
बड़ा शौक था नवोदय में कि मैं भी प्रवास जाता,
यहाँ रहकर वही शौक अब पूरा करता हूँ।
यहाँ रहना अपने आप में एक प्रवास ही है,
बिलकुल रामचंद्र का वनवास ही है।
गए थे मिथलेश , सुजीत , रजनी ,मेरे सदन से प्रवास में,
असम कि वादियों कि कहनियाँ अक्सर सुनाते १०थ के लीजर क्लास में।
भेजते अक्सर हम लोगों के नाम चिट्ठियाँ भी,
उन चिट्ठियों में होती थी कुछ मजेदार बातों कि गुथियाँ भी.

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