सोमवार, 3 मई 2010

ये बनारस है

लगभग एक महिना पहले मेरे बाल मित्र आशीष रंजन यहाँ आये थे। उनके साथ मीठी- मीठी बातें करना हमको बहुत भाता है। एक सप्ताह पहले यहाँ अभिषेक आये थे। अभिषेक के आने से हमें अपने नवोदय के कुछ नए खबर सुनने को मिले। इस बार मेरे तिन मित्र और यहाँ आ रहे हैं-सुजीत , कुंदन और आशुतोष। सुजीत तो मेरे बहुत करीबी मित्र हैं। इन्ही के प्रेरणा से आज मै ब्लॉग लिखता हूँ। वास्तव में सुजीत मेरे साहित्यिक मित्र हैं। कुंदन और आशुतोष मेरे करीबी मित्र तो नही पर बहुत दूर के भी मित्र नही हैं। क्योंकि मैंने इनके साथ सात साल गुजारे हैं।
यहाँ रहकर यहाँ के महापुरुषों के विचारों में खोये रहना मेरे लिए आम बात है। यहाँ के महापुरुषों में मै सबसे ज्यादा कबीरदास से प्रभावित हूँ। कबीर के दोहे अक्सर मेरे जुबान पर रहते हैं। कोई भी काम कर रहा होता हूँ तो मन ही मन उनके दोहे गुनगुनाता रहता हूँ। इनके बारे में अध्ययन करता हूँ तो, सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ कि कितने महान विचार थे कबीर के? प्रेमचंद, रैदास ,जयशंकर प्रसाद आदि लेखक यहीं के थे.प्रेमचंद कि कहानी "पूस कि राअत ", मैंने दशवीं कक्षा में पढ़ी थी। उसमे नीलगायों का जिक्र था। यहाँ आकर जब मैंने नीलगाय देखा,
तब पता चला कि एक लेखक अपने समाज ,अपने प्रदेश को कितनी गहरे से देखता है। जिस समय प्रेमचंद वाराणसी में थे ,उस समय नीलगायों द्वारा खेत चर जाना हो सकता है ,आम बात हो। इसको उन्होंने देखा और अपने कहानी में इसका जिक्र कर दिया।

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