शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

गज़ब की सुबह

आहा! गज़ब की आज सुबह
मंद-मंद समीरण बह रहा
ऐसे स्वच्छ वातावरण में
हर चीज़ नया लग रहा
चिढियों के झुण्ड आकाश में
कर रहे मनमोहक शोर
नित्य जैसा नही है
वस्तुतः आज का भोर
द्रुम असमान को छूने को आतुर
तकते ऊपर की ओर होकर व्याकुल
बादलों से भरा आकाश
आज बिलकुल मेरे पास
एक सूखे वृक्ष की टहनियों पर
बैठे चिड़ियों की बोली
बड़ा ही अद्वितीय वह दृश्य
जो आज सुबह मैंने देखी ।
बरसात के मौसम में सोनू अपने घर की छत पर सोता है। जब एक दिन वह सुबह उठता है तो प्रकृति उसे बिलकुल नयी प्रतीत होती है। उसी सुबह का चित्रण यहाँ किया गया है.

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